अस्थावां में लम्हा लम्हा होती रही इबादत, शब-ए-बारात की रात इबादत करने पर गुनाहों को माफ कर देते हैं खुदा

 बरकतों की रात ‘शब-ए-बारात’ की पूरी रात इबादत में गुजरी।


अस्थावां : इस रात में खुद को कि यह रात है रहमत वाली, माफ होंगे हर गुनाह तेरे कि यह रात है मगफिरत वाली। शव-ए-बारात की रात से रविवार सुबह फज्र की अजान तक गुजरी यह रात, इबादत और खुदा की रहमत से सराबोर रही। अल्लाह के नूर से पुरनूर रही इस रात ने लोगों को मौका दिया खुदा की रहमत के दरिया में डूबने का। इस रात को पलकों पर लेते हुए अकीदतमंदों ने अपने आपको इबादत में मशगूल कर दिया। कोई घर पर रहकर तिलावते कुरान और इबादत में मशगूल था तो कोई महफिलों में अल्लाह उसके रसूल को याद करते हुए गुनाहों की तौबा मांग रहा था।

शव-ए-बारात की रात में हर मंजर इबादत के बाद विशेष दुआएं मांगी गई। रोशनी से नहाई मस्जिदों में ईशा की नमाज के बाद अकीदतमंदों ने नफील नमाज अदा की और कुरान पाक की तिलावत में मशगूल हो गए। मस्जिदों में यह नजारा देखने लायक था।
सभी मस्जिदें रंग-बिरंगी रोशनी में नहा उठी, सारा आलम नूरानी सा लग रहा था, अस्थावां इलाकों में रात भर चहल पहल नजर आई। शब-ए-कद्र के मौके पर मुस्लिमजनों ने मस्जिदों में पूरी रात जागकर खुदा की इबादत की।

 रात को इबादत के बाद अकीदतमंदों ने सुबह फज्र की नमाज के बाद कब्रिस्तानों में अपने बुजुर्गों की मजार पर जाकर अकीदत के मग फिरत के लिए दुआ किए।

हाफ़िज़ आजाद साहिब ने कहा कि कुराने पाक में अल्लाह ताला का इरशाद है कि यह शव-ए-बारात की रात हजार रातों से अफजल है, इसकी फजीलत में नबी अकरम (स. अ.) ने इरशाद फरमाया कि इस रात में तमाम फरिश्ते खासकर कि जिबराईले अमीन दुनिया पर नाजिल होते हैं, और जो लोग इस रात को जागकर अल्लाह की इबादत करते है तो उन बंदों के लिए फरिश्ते दुआएं बख्शीश करते है, साथ ही उनके पिछले तमाम गुनाहों के मिटा दिए जाते है। उनका रिजक बढा दिया जाता है।
✍मोहम्मद हमज़ा अस्थानवी

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